आज
एक शादी की पार्टी में गया था, वहां रसमलाई की आखिरी खेप देखी, लोगों की
लाइन लगी पड़ी थी, लोग टूट रहे थे रस मलाई लेने के लिए, एक थाली में तीन
कटोरी हर एक कटोरी में तीन तीन रस मलाई ......ऐसा लग रहा था की अब बस
दुनिया में रस मलाई कभी नहीं मिलेगी, आखिरी मौका है, लपक लो, जो मिलता है,
जितना मिलता है, सब ले लो, राजू, मुन्नी, छोटू, गजोधर, बांके भईया सभी के
लिए ले लो।
वहीँ पता चला की अब तंदूरी रोटियां भी शायद कभी खाने को
नहीं मिलेगी, छीना झपटी मची हुयी थी, मैंने भी 2 तंदूरी रोटियां छीन कर
खाई, आखिर ऐसा मौका कौन छोड़ता है? वहां ऐसे भी लोग थे, जिन्होंने मक्खन
पहली बार देखा था, वे लोग, गरम गरम तंदूरी रोटियों को मार मार कर मक्खन के
कटोरे में डाल रहे थे, और पिघले मक्खन से लबालब रोटियों को अपनी प्लेट में
डाल रहे थे।
सुदूर एक कोने में भी बहुत भीड़ जमा थी, उत्सुकतावश में
वहाँ गया तो देखा की आइस क्रीम पर लोग टूटे हुए थे, भीड़ में से छोटे छोटे
बच्चे हाथ में 2 - 4 कप ले कर भाग दौड़ मचा रहे थे। शायद माँ और दादी ने कहा
होगा जा मुन्ना कुछ कप आइस क्रीम के ले आ, थोड़े तू भी खा लेना, फिर क्या
पता कब खाने को मिले, तेरे पिताजी तो हमें खिलते ही नहीं हैं, अब ऐसा मौका
मिला है, जितने खा सकते हैं, खा लेते हैं, फिर पेट ख़राब भी हो तो हो, घर पर
तो वोही दाल रोटी खानी है।
कुल मिला कर ऐसा लगा की हम नाहक ही सोचते
हैं की गरीबों को खाने को नहीं मिलता, मुझे तो लगा की बड़ी बड़ी गाड़ी रखने
वालों को भी शायद बड़ी मुश्किल से खाना नसीब होता है, यह कैसी भूख दी है
भगवान् तूने जो मिटाए नहीं मिटती है।