Sunday, January 12, 2014

भिखारी





Location - बोहरा गणेश मंदिर 

बहुत सारे भिखारी सलीके से लाइन में बैठे हुए। कपडे एकदम मैचिंग बोले तो फटी शर्ट, गन्दा पजामा, यानि कि कोस्टुम एकदम परफेक्ट। शायद आपस में यही बात करते होंगे और उनका टीम लीडर बोलता होगा - कि कितना अच्छा हुआ कि यहाँ बैठने का लाइसेंस मिल गया, पहले यहाँ कोई नहीं बैठता था, फिर मैंने एक सर्वे की रिपोर्ट पढ़ी और पाया कि यह तो भिखारी मुक्त स्थान है, तुरंत मीटिंग बुलायी, और सभी इलाकों के भिखारियों कि लिस्ट मंगाई तो यह पाया गया कि डेलीगेशन ढंग से नहीं किया गया है, जगदीश चौक एरिया में इतने भिखारी क्या कर रहें हैं, और चेतक सर्किल पर जब एक ही भिखारी दो कोने सम्भाल सकता है तो वहाँ चार क्यों लगा रखे हैं? वहीँ पर ऑर्डर्स पास किये और शहर के कोने कोने से आठ - दस भिखारी ला कर मंदिर पर बिठा दिए। अब उनका स्पेशलाइजेशन चल रहा है, जैसे कि मंगलवार और शनिवार हनुमान मंदिर के सामने, बुधवार को गणेश मंदिर, शुक्रवार को संतोषी माता मंदिर, सन्डे को अपने लड़के को भेज देता हूँ, हाफ डे पर।
लेकिन अभी भी ड्यूटी सही नहीं है, देल्ही गेट चौराहे पर एक्स्ट्रा भिखारी हैं, वहाँ से दो हटाओ, चेतक सर्किल पर वोह लड़की बैठी रहती है, भीख नहीं मांगती है, कामचोर है, उसकी ड्यूटी लेक सिटी मॉल के बाहर लगाओ, चेतक सर्किल पर आमलेट वाले का आस पास ज्यादा भिखारी हैं, कम करो, लोग irritate होतें हैं और भीख नहीं देते हैं, लॉस हो रहा है यार। और हाँ लोगों को क्या बेवकूफ समझते हो, चेतक सर्किल वाला भिखारी जरूरत से ज्यादा ढीला कुरता पहना था, उसे कहो, फटी हुयी टाइट शर्ट पहने जिसकी एक बांह नहीं हो, लॉजिकल लगेगा। अब तुमको क्या बोलूं? रोज़ रोज़ सिखाना पड़ेगा क्या?


*image only for representational purpose.

Monday, July 22, 2013

आज की शादी

आज एक शादी की पार्टी में गया था, वहां रसमलाई की आखिरी खेप देखी, लोगों की लाइन लगी पड़ी थी, लोग टूट रहे थे रस मलाई लेने के लिए, एक थाली में तीन कटोरी हर एक कटोरी में तीन तीन रस मलाई ......ऐसा लग रहा था की अब बस दुनिया में रस मलाई कभी नहीं मिलेगी, आखिरी मौका है, लपक लो, जो मिलता है, जितना मिलता है, सब ले लो, राजू, मुन्नी, छोटू, गजोधर, बांके भईया सभी के लिए ले लो।
वहीँ पता चला की अब तंदूरी रोटियां भी शायद कभी खाने को नहीं मिलेगी, छीना झपटी मची हुयी थी, मैंने भी 2 तंदूरी रोटियां छीन कर खाई, आखिर ऐसा मौका कौन छोड़ता है? वहां ऐसे भी लोग थे, जिन्होंने मक्खन पहली बार देखा था, वे लोग, गरम गरम तंदूरी रोटियों को मार मार कर मक्खन के कटोरे में डाल रहे थे, और पिघले मक्खन से लबालब रोटियों को अपनी प्लेट में डाल रहे थे।
सुदूर एक कोने में भी बहुत भीड़ जमा थी, उत्सुकतावश में वहाँ गया तो देखा की आइस क्रीम पर लोग टूटे हुए थे, भीड़ में से छोटे छोटे बच्चे हाथ में 2 - 4 कप ले कर भाग दौड़ मचा रहे थे। शायद माँ और दादी ने कहा होगा जा मुन्ना कुछ कप आइस क्रीम के ले आ, थोड़े तू भी खा लेना, फिर क्या पता कब खाने को मिले, तेरे पिताजी तो हमें खिलते ही नहीं हैं, अब ऐसा मौका मिला है, जितने खा सकते हैं, खा लेते हैं, फिर पेट ख़राब भी हो तो हो, घर पर तो वोही दाल रोटी खानी है।
कुल मिला कर ऐसा लगा की हम नाहक ही सोचते हैं की गरीबों को खाने को नहीं मिलता, मुझे तो लगा की बड़ी बड़ी गाड़ी रखने वालों को भी शायद बड़ी मुश्किल से खाना नसीब होता है, यह कैसी भूख दी है भगवान् तूने जो मिटाए नहीं मिटती है।

My first poetry

Hi guys,
Presenting my first poetry in hindi. I was surprised to see the world working in a different manner than I think....
Please comment what all of you think about this.

जब से क़ानून तोड़ने लगा हूँ में,
दुखों को पीछे छोड़ने लगा हूँ में|
अब कोई मुझे नहीं रोक सकता,
सभी सिग्नल तोड़ने लगा हूँ में|
पढ़ाई की कीमत मालूम है मुझे,
बहुत सारे पैसे जोड़ने लगा हूँ में|
इस देश में कोई भी काम करना नहीं आसान,
इसीलिए रिश्वत जोड़ने लगा हूँ में|
जब से क़ानून तोड़ने लगा हूँ में,
दुखों को पीछे छोड़ने लगा हूँ में|
ईमानदारी की नौकरी रास नहीं आई मुझे,
अब तो साहब के आगे हाथ पैर जोड़ने लगा हूँ में|
प्यार वफ़ा सब बेकार की बातें हैं,
हर चीज़ को पैसे से तोलने लगा हूँ में|
पहले कुछ शरम आती थी परितोष,
अब तो शर्मो हया छोड़ने लगा हूँ में|
जब से क़ानून तोड़ने लगा हूँ में,
दुखों को पीछे छोड़ने लगा हूँ में|

Friday, May 10, 2013

अंग्रेजी और बड़े लोग

यह जो बड़े बड़े लोग अच्छी अच्छी अंग्रेजी बोलते हैं उनमें से 95 प्रतिशत लोग फेंकू किस्म के होतें है। इन्होने ज़िन्दगी भर बस एक टेबल कुर्सी पर बैठ कर किताबें पढ़ी हैं, ज्ञान रटा है, अंग्रेजी बोलनी सीखी है, और फिर लोगो को वही बकवास सुनाई है। इनमें से आधे लोग आपको न्यूज़ चैनल पर मिलेंगे, ऐसा  लगता है, बेचारा देश की चिंता में आज सुबह का नाश्ता छोड़ कर आया है, भूखा प्यासा नेताओं को इकठ्ठा कर के बकवास किये जा रहा है / रही है। पूछ रहा है, की ऐसा कब तक चलेगा? वैसा कब तक चलेगा? कुछ लोग पार्लियामेंट में मिलेंगे, जो की इतनी अच्छी अंग्रेजी बोलतें हैं, की ज्यादातर तो समझ ही नहीं आती, तो कौन इनसे सवाल करे .....वैसे यह इतनी अच्छी अंग्रेजी किसे दिखाने के लिए बोलते हैं? जो सबसे क्लिष्ठ शब्द है, वही ढूंढ कर लाते हैं, ताकि कोई आगे कोई सवाल न कर ले, साले को समझ में आएगा तो पूछेगा ना। 
फिर कुछ लोग आपको बड़ी कॉर्पोरेट कंपनियों में मिलेंगे, क्या अंग्रेजी बोलतें हैं, भाई वाह! यह लोग लगातार निम्न शब्दों का इस्तेमाल करते हैं - initiative, Onus (जो की Anus की तरह लगता है), responsibility, pro activeness, inculcate, ownership, mutually benefiting relationship ....सुनने में तो लगता है की इन सभी शब्दों का इस्तेमाल करने से कोई समस्या नहीं होनी चाहिए लेकिन सबसे ज्यादा समस्याएँ इन्ही लोगों के साथ दिखाई देती हैं। 
इसके बाद जो लोग बच जाते हैं, वे हैं बड़े बड़े लेखक (अंग्रेजी वाले)...यह लोग आपको उन सभी को ज्ञान बांटते नज़र आयेंगे जिन्हें अंग्रेजी नहीं आती है। यह लोग देश की गरीबी और लाचारी की चर्चा किसी बड़े 5 सितारा होटल की लॉबी में हो रहे समारोह में करेंगे जिसे सुनने पहले वाली तीन श्रेणिया आएँगी, जो ना गरीब हैं, न लाचार हैं। फिर यह अपनी किताबों पर हस्ताक्षर करेंगे और उसे बेच कर वापस अपने वतन इंग्लैंड या अमेरिका चले जायेंगे। फिर यह कहेंगे की देश की समस्यायों पर मेरी नयी किताब  आ रही है, आप pre order दीजिये।
कहने का तात्पर्य यह है की अगर बोलने से सारी समस्यायों का निवारण होता तो  हमारे देश में कोई समस्या होती ही नहीं, क्योंकि जो काम करता है, उसे बोलने का समय नहीं होता है, और देश काम करने से आगे बढ़ता है बोलने से नहीं, इसीलिए बोलो कम और काम करो।